Tuesday 15 October 2013

रस कितना - अवनीश सिंह चौहान

मेरे मनुआं,
जीवन है तो,
जीवन भर
पड़ता है तपना

जीवन-पंछी
बात न माने
चंचल कितना-
नभ को ताने

इसे सिखा तू
तिरना-उड़ना
पहुँच शिखर पर
सीख ठहरना

नदिया जैसी
चाल निराली
भरी हुई है
या है खाली

कितनी उथली,
कितनी गहरी
तू ही नापे 
तू है नपना

उम्र तँबूरा
तार न बोले
ठीक लगें सुर
तो मुँह खोले

बिन गुरुवर के
जाने कैसे
अन्तर भरा हुआ
रस कितना



No comments:

Post a Comment

नवगीत संग्रह ''टुकड़ा कागज का" को अभिव्यक्ति विश्वम का नवांकुर पुरस्कार 15 नवम्बर 2014 को लखनऊ, उ प्र में प्रदान किया जायेगा। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष उस रचनाकार के पहले नवगीत-संग्रह की पांडुलिपि को दिया जा रहा है जिसने अनुभूति और नवगीत की पाठशाला से जुड़कर नवगीत के अंतरराष्ट्रीय विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। सुधी पाठकों/विद्वानों का हृदय से आभार।