Tuesday 15 October 2013

फगुआ- ढोल बजा दे - अवनीश सिंह चौहान

हर कड़ुवाहट पर
जीवन की
आज अबीर लगा दे
फगुआ-ढोल बजा दे

तेज हुआ रवि
भागी ठिठुरन
शीत-उष्ण-सी
ऋतु की चितवन

अकड़ गई जो
टहनी मन की
उसको तनिक लचा दे

खोलें गाँठ
लगी जो छल की
रिहा करें हम
छवि निश्छल की

जलन मची अनबन की
उस पर
शीतल बैन लगा दे

साल नया है
पहला दिन है
मधुवन-गन्ध
अभी कमसिन है

सुनो, पपीहे
ऐसे में तू
कोयल के सुर गा दे



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