अनुभव के मोती - अवनीश सिंह चौहान
बनकर ध्वज हम
इस धरती के
अंबर में फहराएँ
मेघा बनकर
जीवन जल दें
सागर-सा लहराएँ
टूटे-फूटे
बासन घर के
अपनी व्यथा सुनाते
सभी अधूरे सपने
मिलकर
अक्सर हमें रुलाते
पथ के कंटक वन को
आओ
मिलकर आज जराएँ
बाग़ लगाएँ
फूल बनें हम
कोयल-सा कुछ गाएँ
भोर-किरण का
रूप धरें हम
तम को दूर भगाएँ
चुन-चुनकर
अनुभव के मोती
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