बिना नाव के माँझी देखे,
मैंने नदी किनारे
इनके-उनके
ताने सुनना
दिन भर देह गलाना
तीन रुपैया
मिले मजूरी
नौ की आग बुझाना
अलग-अलग है राम कहानी,
टूटे हुए शिकारे
बढ़ती जाती
रोज़ उधरी
ले-दे काम चलाना
रोज़-रोज़
झोपड़ पर अपने
नये तगादे आना
घात सिखाई है तंगी ने,
किसको कौन उबारे
भरा जलाशय
जो दिखता है
केवल बातें घोले
प्यासा तोड़ दिया
करता दम
मुख को खोले-खोले
अपने स्वप्न, भयावह कितने
उनके सुखद सहारे
मैंने नदी किनारे
इनके-उनके
ताने सुनना
दिन भर देह गलाना
तीन रुपैया
मिले मजूरी
नौ की आग बुझाना
अलग-अलग है राम कहानी,
टूटे हुए शिकारे
बढ़ती जाती
रोज़ उधरी
ले-दे काम चलाना
रोज़-रोज़
झोपड़ पर अपने
नये तगादे आना
घात सिखाई है तंगी ने,
किसको कौन उबारे
भरा जलाशय
जो दिखता है
केवल बातें घोले
प्यासा तोड़ दिया
करता दम
मुख को खोले-खोले
अपने स्वप्न, भयावह कितने
उनके सुखद सहारे
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