टूट गए पर
तुम बिन मेरे
पिंजरे में दिन-रात
रजनीगंधा
दहे रात भर,
जागे-हँसे चमेली
देह हुई निष्पंद
कि जैसे
सूनी खड़ी हवेली
कौन भरे
मन का खालीपन?
कौन करेगा बात?
कोमल-कोमल
दूब उगी है
तन-मन ओस नहाए
दूर कहीं कोई है वीणा
दीपक राग सुनाए
खद्योतों ने
भरी उड़ानें
जरे कमलनी पात
बिना नीर के
नदिया जैसी,
चंदा बिना चकोरी
बिना प्राण के लगता जैसे
माटी की हो छोरी
प्राण प्रतिष्ठा हो-
सपनों की
टेर रही सौग़ात
तुम बिन मेरे
पिंजरे में दिन-रात
रजनीगंधा
दहे रात भर,
जागे-हँसे चमेली
देह हुई निष्पंद
कि जैसे
सूनी खड़ी हवेली
कौन भरे
मन का खालीपन?
कौन करेगा बात?
कोमल-कोमल
दूब उगी है
तन-मन ओस नहाए
दूर कहीं कोई है वीणा
दीपक राग सुनाए
खद्योतों ने
भरी उड़ानें
जरे कमलनी पात
बिना नीर के
नदिया जैसी,
चंदा बिना चकोरी
बिना प्राण के लगता जैसे
माटी की हो छोरी
प्राण प्रतिष्ठा हो-
सपनों की
टेर रही सौग़ात
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