बड़े चाव से
बतियाता था
अपना गाँव-समाज
छोड़ दिया है
चैपालों ने
मिलना-जुलना आज
बीन-बान लाता था
लकड़ी
अपना दाऊ बाग़ों से
धर अलाव
भर देता था, फिर
बच्चों को अनुरागों से
छोट-बड़ों से
गपियाते थे
आँखिन भरे लिहाज
ननहर से जब आते
मामा
दौड़े-दौड़ै सब आते
फूले नहीं समाते
मिलकर
घंटों-घंटों बतियाते
भेंटें होतीं-
हँसना होता
खुलते थे कुछ राज
जब जाता था
घर से कोई
पीछे-पीछे पग चलते
गाँव किनारे तक
आकर सब
अपनी नम आँखें मलते
तोड़ दिया है किसने
आपसदारी का
वह साज
बतियाता था
अपना गाँव-समाज
छोड़ दिया है
चैपालों ने
मिलना-जुलना आज
बीन-बान लाता था
लकड़ी
अपना दाऊ बाग़ों से
धर अलाव
भर देता था, फिर
बच्चों को अनुरागों से
छोट-बड़ों से
गपियाते थे
आँखिन भरे लिहाज
ननहर से जब आते
मामा
दौड़े-दौड़ै सब आते
फूले नहीं समाते
मिलकर
घंटों-घंटों बतियाते
भेंटें होतीं-
हँसना होता
खुलते थे कुछ राज
जब जाता था
घर से कोई
पीछे-पीछे पग चलते
गाँव किनारे तक
आकर सब
अपनी नम आँखें मलते
तोड़ दिया है किसने
आपसदारी का
वह साज
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