Monday 14 October 2013

चिड़िया और चिरौटे - अवनीश सिंह चौहान


घर-
मकान में क्या बदला है,
गौरेया रूठ गई

भाँप रहे
बदले मौसम को
चिड़िया और चिरौटे
झाँक रहे
रोशनदानों से 
कभी गेट पर बैठे

सोच रहे
अपने सपनों की
पैंजनिया टूट गई 

शायद पेट से भारी
चिड़िया
नीड़ बुने, पर कैसे
ओट नहीं
कोई छोड़ी है
घर पत्थर के ऐसे

चुआ डाल से
होगा अण्डा
किस्मत ही फूट गई



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