Monday, 14 October 2013

हिरनी-सी है क्यों - अवनीश सिंह चौहान

छुटकी बिटिया
अपनी माँ से
करती कई सवाल

चूड़ी-कंगन नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख-मटमैला-सा
है तेरा
बौराए-से नैना हैं

इन नैनों का
नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल

देर-सबेर लौटती घर को
जंगल-जंगल पिफरती है
लगती गुमसुम-
गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है

डरी हुई
हिरनी-सी है क्यों 
बदली-बदली चाल 

नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर
उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है

पार करेंगे
कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल


1 comment:

  1. नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
    भय ऐसा भी होता है
    छत-मुडेर पर
    उल्लू असगुन
    बैठा-बैठा बोता है--------adbhut bhai ji

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नवगीत संग्रह ''टुकड़ा कागज का" को अभिव्यक्ति विश्वम का नवांकुर पुरस्कार 15 नवम्बर 2014 को लखनऊ, उ प्र में प्रदान किया जायेगा। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष उस रचनाकार के पहले नवगीत-संग्रह की पांडुलिपि को दिया जा रहा है जिसने अनुभूति और नवगीत की पाठशाला से जुड़कर नवगीत के अंतरराष्ट्रीय विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। सुधी पाठकों/विद्वानों का हृदय से आभार।