छुटकी बिटिया
अपनी माँ से
अपनी माँ से
करती कई सवाल
चूड़ी-कंगन नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख-मटमैला-सा
है तेरा
बौराए-से नैना हैं
इन नैनों का
नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल
देर-सबेर लौटती घर को
जंगल-जंगल पिफरती है
लगती गुमसुम-
गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है
डरी हुई
हिरनी-सी है क्यों
बदली-बदली चाल
नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर
उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है
पार करेंगे
कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल
चूड़ी-कंगन नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख-मटमैला-सा
है तेरा
बौराए-से नैना हैं
इन नैनों का
नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल
देर-सबेर लौटती घर को
जंगल-जंगल पिफरती है
लगती गुमसुम-
गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है
डरी हुई
हिरनी-सी है क्यों
बदली-बदली चाल
नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर
उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है
पार करेंगे
कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल
नई व्यवस्था में क्या, ऐ माँ
ReplyDeleteभय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर
उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है--------adbhut bhai ji