एक प्रवासी
भँवरा है-
रंग-गंध का गाँव है
फूलों को वह भरमाता है
मीठे-मीठे गीत सुनाकर
और हृदय में बस जाता है
मादक-मधु मकरंद चुराकर
निष्ठुर,
सुधि की धूप बन गया
विरह गीत की छाँव है
बीत रही जो फूलों पर, वह
देख-देख कलियाँ चौकन्ना
सहज नहीं है उसका मिलना
बैठा, अन्तर में जो बन्ना
पता चला
वह बहुत गहन है
उम्र कागज़ी नाव है
भँवरा है-
रंग-गंध का गाँव है
फूलों को वह भरमाता है
मीठे-मीठे गीत सुनाकर
और हृदय में बस जाता है
मादक-मधु मकरंद चुराकर
निष्ठुर,
सुधि की धूप बन गया
विरह गीत की छाँव है
बीत रही जो फूलों पर, वह
देख-देख कलियाँ चौकन्ना
सहज नहीं है उसका मिलना
बैठा, अन्तर में जो बन्ना
पता चला
वह बहुत गहन है
उम्र कागज़ी नाव है
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