रस कितना - अवनीश सिंह चौहान
मेरे मनुआं,
जीवन है तो,
जीवन भर
पड़ता है तपना
जीवन-पंछी
बात न माने
चंचल कितना-
नभ को ताने
इसे सिखा तू
तिरना-उड़ना
पहुँच शिखर पर
सीख ठहरना
नदिया जैसी
चाल निराली
भरी हुई है
या है खाली
कितनी उथली,
कितनी गहरी
तू ही नापे
तू है नपना
उम्र तँबूरा
तार न बोले
ठीक लगें सुर
तो मुँह खोले
बिन गुरुवर के
जाने कैसे
अन्तर भरा हुआ
रस कितना
No comments:
Post a Comment