Wednesday 27 July 2016

अवनीश सिंह चौहान कृत 'टुकड़ा कागज़ का' पर विद्वानों की टिप्पणियाँ


ab-singh---copy-155-1801. युवा कवि चिरंजीव अवनीश चौहान ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने अल्पावधि में अपने सृजन के बल पर हिन्दी काव्य जगत में न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है अपितु सुधी पाठकों को आकृष्ट भी किया है। इन्होंने गीत-नवगीत के सृजन के साथ विभिन्न गीत-नवगीत संग्रहों की समीक्षा एवं इंटरनेट पर ‘पूर्वाभास’ पत्रिका का कुशल संपादन कर समीक्षक एवं संपादक के रूप में भी ख्याति अर्जित की है। इस संग्रह की रचनाएँ विषयवस्तु की दृष्टि से बहुआयामी हैं। इनमें जनसंपृक्ति, समकालीनता एवं शाश्वत मूल्यों की संश्लिष्टता स्पष्ट रूप से परिलक्षित है। कवि जीवन मूल्यों के पुनःस्थापन के लिए भी सचेष्ट है। युवा कवि अवनीश चैहान का यह काव्य संग्रह हिन्दी जगत में समादृत होगा। -  (स्व) डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया

2. वर्ष 1990 के बाद के गीतों ने समकालीन गीत रचना को एक नयी भाषा दी है जो पूरवर्ती गीत परम्परा से भिन्न है। वीरेंद्र आस्तिक, यश मालवीय, अवनीश सिंह चौहान आदि ने उपभोक्तावादी जिंसों तथा कम्प्यूटर के उपयोग में लाये जाने वाले तकनीकी शब्दों को इन गीतों के बिम्ब और प्रतीक के रूप में इस्तेमाल कर गीत-रचना की काव्य भाषा को अत्यधिक आधुनिक और समृद्ध बनाया है। - नचिकेता, पटना, बिहार 

3. अवनीश सिंह चौहान का गीत संग्रह 'टुकड़ा कागज का' पढ़ते हुए मुझे श्रीप्रकाश मिश्र की बात याद आई, इसे पढ़कर लगा कि इसमें संग्रहीत जो गीत हैं वे समकालीन हिन्दी कविता के कथ्य और तथ्य से बहुत गहरे जुड़ते नजर आते हैं। इन गीतों में न तो कोरी भावुकता है न कोरी बौद्धिकता, जिस तरह निराला के बाद की कविता की चर्चा करते वक्त हम अज्ञेय, मुक्तिबोध, नागार्जुन, रघुवीर सहाय, शमशेर, धर्मवीर भारती, केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, श्रीकांत वर्मा, धूमिल वगैरह का नाम धड़ाधड़ लेते जाते हैं वैसे गीतकारों की कोई श्रंखला नहीं बन पाती, किन्तु दिनेश सिंह, वीरेंद्र आस्तिक, बुद्धिनाथ मिश्र, कुँवर बेचैन, कैलाश गौतम, यश मालवीय, सुधांशु उपाध्याय आदि की एक अलग परम्परा जरूर दिखाई पड़ती है जिसने गीत-नवगीत को समकालीन कविता जैसी चुनौतियों के समकक्ष खुद को उभारा। … समकालीन हिन्दी नवगीत विधा में अवनीश सिंह चौहान का यह संग्रह और इसमें संग्रहीत गीत एक उपलब्धि और योगदान के रूप में जाने जायेंगे। - श्री रंग, इलाहाबाद, उ. प्र. 

4. संग्रह की तमाम रचनाएँ हमें अपने कथ्य एवं सटीक-सधी कहन-भंगिमा से आज के सन्दर्भों से बड़ी शिद्दत से परिचित कराती हैं। इस दृष्टि से युवा रचनाकारों में अवनीश सिंह चौहान का कृतित्त्व, निश्चित ही, गीतकविता के भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है। उनकी कहन को नित नूतन आयाम मिले, जिससे गीत कविता के संस्कार की प्रक्रिया अनवरत चलती रहे, यही उनके कवि के प्रति मेरी कामना है। - कुमार रवींद्र , हिसार, हरियाणा

5.  'टुकड़ा कागज का' अवनीश सिंह चौहान का प्रथम संग्रह है। तथापि इससे गुजरकर मैं निःसंकोच कह सकता हूँ कि वे एक समर्थ नवगीतकार हैं। एतदर्थ उन्हें बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूँ। मुझे विश्वास है कि भोर किरण की धूपिया संभावनाओं से परिपूर्ण प्रस्तुत संग्रह का हिन्दी काव्य-जगत में भरपूर स्वागत होगा। श्रीकृष्ण शर्मा, छिंदवाड़ा, म. प्र. 

6. अवनीश के गीतों को पढ़कर लगता है कि उनके पास अनुभूतियों एवं शब्दों का वृहद् कोश है। सहज प्रतीकों, टटके बिम्बों और अभिधा भाषा का सन्तुलित प्रयोग उनकी रचनाओं को संप्रेषणीय एवं सुगम्य बना देता है। प्रायः छोटे-छोटे छन्द और न्यूनतम शब्दों में कथ्य को निरुपित करने की कला में निपुण इस कवि के गीतों में जहाँ वैश्विक सौहार्द्र दिखाई पड़ता है, वहीं सामाजिक विसंगतियाँ और विद्रूपताएँ भी चित्रित हैं। मेरी कामना है कि अवनीश चैहान महासिन्धु से विशाल हों और नागराज से शिखरस्थ हों।- मधुकर अष्ठाना, लखनऊ, उ. प्र. 

7.  ‘टुकड़ा कागज़ का’ के नवगीत अवनीश चैहान की असीम संभावनाओं को उजागर करने के साथ भावी नवगीत के उस स्वरूप की ओर भी संकेत करते हैं जब यथार्थ अध्यात्म के छोरों को स्पर्श करता हुआ प्रस्तुत होगा। - शचीन्द्र भटनागर, मुरादाबाद, उ. प्र.

8. नि:संदेह इन संग्रहीत गीतों को नवगीत की कोटि में रखा जा सकता है क्योंकि इनमें नवगीत की चर्चित विशेषताओं को देखा जा सकता है। संवेदना और शिल्प दोनों क्षेत्रों में नवगीत की प्रवृत्तियों में अनुभूतियों की सहजता और सरलता, सौंदर्य के प्रति भोगपरक दृष्टिकोण, जीवन से सम्बंधित प्रेम की नयी उद्भावनाएं, प्रकृति के माध्यम से वैयक्तिक भावों की व्यंजना, विज्ञान की दुनिया से लगाव, महानगरों का संत्रास, आधुनिक युगबोध एवं उसकी सामाजिकता, कुछ कर गुजरने का साहस आदि प्रमुख हैं, जो अवनीश के गीतों में न्यूनाधिक रूप से उपलब्ध हैं। लय और छंदों में वैविध्य एवं गेयता और बौद्धिकता की एकान्विति, उत्कृष्ट प्रतीकों की संयोजना, पैनी व्यंग्यात्मकता, आधुनिक और युगबोध से सम्पृक्त भावानुकूल सहज, सरल भाषा अवनीश के गीतों की  शैल्पिक पहचान है।  - नीलमेन्दु सागर, बेगूसराय,  बिहार  

9. अवनीश सिंह चौहान प्रगतिशील चेतना के आस्थावान कवि हैं जिनकी लेखनी से भौतिक संसार की मार्मिक अभिव्यक्तियाँ तो हुई ही हैं जीवन को समझने की आस्थावान आध्यात्मिक उपलब्धियां भी कम नहीं हैं। इस दृष्टि से 'टुकड़ा कागज का' एक मूल्यवान कृति है। - रामनारायण रमण, रायबरेली, उ. प्र.  

10. फ़ैज़ की पंक्ति थी 'इक उम्मीद से दिल बहलता रहा' - ये उम्मीद ग़ालिब के 'दिल बहलाने के ख़याल' से अलग थी। यहाँ सर्वेश्वर की 'दिए में तेल से भीगी बाती' की उम्मीद थी। अवनीश अपने गीतों में चाहे जितनी क्रूर स्थितियों का वर्णन करें लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते। मैथ्यू आर्नल्ड का मानना था 'कि सभ्यता के संक्रांति काल में कविता ही अंततः मानव सभ्यता और संस्कृति को पोषित कर सकती है' - तो अवनीश के गीत भी इस भाव से अलग नहीं हैं। उनके कुछ गीतों में जीवन और समाज की निर्मलता और मासूमियत के ऐसे चित्र  देखने को मिलते हैं जो निश्चित ही ऐसी उम्मीद जागते हैं जिनसे दिल को आने वाले सुखद समय के इंतज़ार में बहलाया जा सकता है।  - अभिजीत, कोलकाता, प. ब. 

11. अवनीश के गीतों में जहाँ कविता के प्रति अधिक निकटता और प्रेम, प्रकृति, लोक एवं मानवता के प्रति गहरी आस्था है वहीं जड़ यथास्थितिवाद, शोषण, उत्पीड़न आदि 'जहरीले परिवेश' और व्यवस्था के प्रति तीव्र आक्रोश और विरोध भी है। इनमें उत्तर आधुनिकतावाद और बाजारवाद के दुष्परिणामों का भी दर्शन किया जा सकता है।  इस दृष्टि से अवनीश सिंह चौहान  केदारनाथ अग्रवाल, रामदरश मिश्र, विष्णु सक्सैना आदि की अगली कड़ी में जुड़ जाते हैं।  - डॉ शिवचन्द प्रसाद, अलीगढ़, उ. प्र. 

12. 'टुकड़ा कागज का' में समय की नब्ज में कंपकपाती ध्वनि के संग रिदम बिठाते नवगीत है। समाज की रगों में उठती गिरती धड़कनों को न केवल अवनीश गिन सकते हैं वरन् पाठक वर्ग भी उसके नाद को बखूबी आत्मसात करता है और जब पाठक और कवि की आत्मा द्वैत से अद्वैत हो जाती है समझईये कवि की साधना सफल हो गई। डॉ. साधना बलवटे, भोपाल, म .प्र. 

13. अवनीश सिंह चौहान द्वारा विरचित 'टुकड़ा कागज का' नए कथ्य-तथ्य से भरे-पूरे समकालीन गीत, नवगीत और जनगीतों से सुगठित तथा विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति से समृद्ध गीत संग्रह स्वागतेय है।  - सुरेन्द्र बाजपेयी, वाराणसी, उ. प्र.  

14. अवनीश के गीत छोटे होने के बावजूद बहुत कुछ समेटे हैं। उनके बिम्ब समर्थ हैं जिनमें जीवन के विविध रंग झलकते हैं। भाषा में अंग्रेजी, कन्नौजी और बुंदेली के शब्द घुले-मिले हैं। भुवनेश्वर उपाध्याय, दतिया, म. प्र. 
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15. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने आधुनिक कविता को छंद के बंधन से मुक्त किया। उन्होंने ही नवगीत, लंबी कविता और हिंदी में ग़ज़लों की परंपरा डाली। उत्तर आधुनिक युग में नवगीत विधा में कुछ आवश्यक तत्व और भी जुड़ते चले गए हैं, लेकिन उसका लोक-संस्कृति का भाव सदैव विद्यमान रहेगा क्योंकि गीतों का आदिम रूप लोक-गीत ही रहे हैं। नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल ने इस लोकगीत की लय में कविताएं रच कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। इसी क्रम में अवनीश सिंह चौहान की यह  पुस्तक भी नवगीतों के साथ उपस्थित हुई है। कवि ने दो धरातलों पर इन गीतों को प्रस्तुत किया है-ग्राम्य और शहरी। दोनों ही धरातलों पर कवि की दृष्टि यथार्थवादी है।डॉ ममता कुमारी, कल्पतरु एक्सप्रेस, आगरा, उ. प्र.

16.  अवनीश सिंह चौहान नई पीढ़ी के गीतकार हैं। उनके गीत संग्रह में संग्रहीत गीत गीतकार की विराट दृष्टि को पेश करते हैं। गीतों की भाषा सहज औ सरल है। आम आदमी से जुड़े मुहावरे और प्रतीक इस्तेमाल किए गए हैं जो गीतों को प्रभावी बनाते हैं। - राजस्थान पत्रिका, जयपुर, राजस्थान

17. एक शिक्षक और साहित्यकार अवनीश सिंह चैहान के व्यक्तित्व में समाया है, जिसकी यथार्थ अभिव्यक्ति उनकी रचनाधर्मिता की विशिष्टता है। गाँव से वे संपृक्त हैं, नगरों में वे रहे हैं और महानगर में रह रहे हैं; अतः तीनों की बहुआयामी अनुभूतियों ने उनके काव्य कलेवर को सजाया-संवारा है। मानव जीवन के यथार्थ द्रष्टा होने के बावजूद भी वे आदर्शवादी संचेतना के साहित्यकार हैं। जीवन-मूल्यों में उनकी गहन आस्था है। वे वसुधैव  कुटुम्बकम् की भावना के प्रबल पक्षधर हैं। यह तथ्य मैं नहीं उनकी रचनाएँ बोलती हैं। साथ ही वे हिन्दी की नवगीत विधा के प्रबल समर्थक ही नहीं, अपितु सहज शिल्पी हैं। नवगीत के काव्यशिल्प सौष्ठव का उन्हें सम्यक् ज्ञान है जिसका साक्ष्य ‘टुकड़ा कागज़ का’ में समाहित रचनाएँ हैं। निस्सन्देह, अवनीश चैहान द्वारा रचित यह काव्यकृति हिन्दी नवगीत विधा की एक महत्वपूर्ण कृति है और वे समकालीन हिन्दी नवगीत के एक समर्थ हस्ताक्षर है। - डॉ महेश दिवाकर, मुरादाबाद, उ. प्र.

18.  अवनीश सिंह चैहान एक प्रतिबद्ध नवगीतकार हैं। भारतीय ग्राम्य परिवेश, प्रकृति और मानवता के प्रति गहरी गीतात्मक अनुभूति के धनी इस कवि के पास अनुभव और दृष्टि के साथ लयात्मकता का वह अजस्त्र स्रोत है, जो देखे हुए यथार्थ को नए रूपों में प्रस्तुत करता है। सघन सामाजिकता के साथ शब्द और लय की विरल संगति वाले इस कवि को मेरी सहस्त्र शुभकामनाएँ। - प्रो अनिल जनविजय, मास्को, रूस 

19. अवनीश मेरा अनुज और असीम सम्भावनाओं से युक्त प्रिय गीतकवि है। इसमें प्रतिभा भी है, दृष्टि भी और दीर्घकाल तक तपने का धैर्य व सामर्थ्य भी। अवनीश गीत लिखते भी हैं और गीत विधा की परवरिश की चिन्ता भी करते हैं। यह अपने में बड़ी बात है। अवनीश के ये गीत नये दौर के गीत हैं। मन इनका भी अपने पुराने गाँवों में रमता है, मगर विसंगतियों के काँटे केले के नये पत्ते की तरह कोमल मन को लहूलुहान कर देते हैं। फिर भी वे निराश नहीं है और तमाम ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों से गुजरने के बाद भी वे जीवन में हरापन ढूंढ ही लेते हैं। यह मेरा आकलन भी है और आशीष भी। - डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून, उत्तराखंड

20. ‘टुकड़ा कागज़ का’ गीत-संग्रह पलटते हुए एकाएक निम्नलिखित पंक्तियों पर दृष्टि ठिठक गई। पंक्तियाँ हैं- ‘चौतरफा है / जीवन ही जीवन / कविता मरे / असंभव है।’ इसी गीत में तमाम सारे उदाहरण भी हैं। घर है (मकान नहीं), माँ, बापू, भाई-बहिन हैं, तिनकों से निर्मित चिड़ियों का नीड़ भी है, गंगा में पानी की धरा है, खेतों में धनी-चूनर फैली हुई है, शिशुओं का किलकन है, बछरों की रंभन है- फिर कविता मरे तो क्यों? गीतकवि को इस विश्वास हेतु आलोचना-शिविर से हार्दिक बधाई। पहली बात तो यह कि गीत और कविता को एक मानकर कवि ने गीत को एक विस्तृत आधार-भूमि प्रदान की है और दूसरी बात यह कि रचना-परंपरा की पुरातन विरासत को पुनः अर्जित कर उसे सार्थक समकालीनता में पुर्नस्थापित कर दिया है। कहना न होगा कि पाँचवे दशक के बाद के सर्जन ने उसी प्रकार अपनी परंपरा से अपने को काटा जिस प्रकार भारतीय जनतंत्र की राजनीति ने अपने को स्वाधीनता-आंदोलन की विरासत से अलग किया। मिट्टी और जीवन से जोड़कर अपने सर्जन में कवि ने जो उर्जा भरी है, पूरा संग्रह उसका प्रमाण है। - डॉ विमल, वर्धमान, प॰ बं॰
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पुस्तक: टुकड़ा कागज़ का 
              (गीत-संग्रह) 
ISBN 978-81-89022-27-6
कवि: अवनीश सिंह चौहान 
प्रकाशन वर्ष: प्रथम संस्करण-2013 
पृष्ठ : 119
मूल्य: रुo 125/-
प्रकाशक: विश्व पुस्तक प्रकाशन  
304-ए,बी.जी.-7, पश्चिम विहार,
नई दिल्ली-63 
वितरक: पूर्वाभास प्रकाशन
चंदपुरा (निहाल सिंह, 
इटावा-206127(उ प्र) 
दूरभाष: 09456011560
ई-मेल: abnishsinghchauhan
@gmail.com
पुस्तक: टुकड़ा कागज़ का (गीत-संग्रह) 
ISBN 978-93-83878-93-2
कवि: अवनीश सिंह चौहान 
प्रकाशन वर्ष: द्वितीय संस्करण -2014 (पेपरबैक)
पृष्ठ : 116
मूल्य: रुo 90/-
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर
Phone: 0141-2503989, 09829018087
 
Book: Tukda Kagaz Ka (Hindi Lyrics)
ISBN 9978-93-83878-93-2
Author: Abnish Singh Chauhan
First Edition: 2014 (Paperback)
Price: 90/-
Publisher: Bodhi rakashan, 
Jaipur, Raj, India.
Web Address
  
http://tukdakagazka.blogspot.in/

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नवगीत संग्रह ''टुकड़ा कागज का" को अभिव्यक्ति विश्वम का नवांकुर पुरस्कार 15 नवम्बर 2014 को लखनऊ, उ प्र में प्रदान किया जायेगा। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष उस रचनाकार के पहले नवगीत-संग्रह की पांडुलिपि को दिया जा रहा है जिसने अनुभूति और नवगीत की पाठशाला से जुड़कर नवगीत के अंतरराष्ट्रीय विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। सुधी पाठकों/विद्वानों का हृदय से आभार।