देवी धरती की - अवनीश सिंह चौहान
दूब देख लगता यह
सच्ची कामगार
धरती की
मेड़ों को
साध रही है
खेतों को
बाँध रही है
कटी-फटी भू को
अपनी-
ही जड़ से
नाथ रही है
कोख हरी करती है
सूनी पड़ी हुई
परती की
दबकर खुद
तलवों से यह
तलवों को
गुदगुदा रही
ग्रास
दुधरू गैया का
परस रहा है
दूध-दही
बीज बिना उगती है
देवी है देवी
धरती की
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