साभार: राजस्थान पत्रिका, रविवार, फरवरी 10, 2013 |
अवनीश सिंह चौहान नई पीढ़ी के गीतकार हैं उनके गीतों में विविधता की दुनिया नजर आती हैं अवनीश का हाल ही आया गीत संग्रह ‘टुकड़ा कागज का’ गीतों की विविधता समेटे हुए है। उनके गीतों में जहाँ नदी की लहरें, चिड़िया और चिरौंटे, गांव-समाज हैं वहीं गली की धूल, बचपन, माता-पिता से जुड़े अनुभव भी गुनगुनाने को मिल जाएंगे।
माँ गीत में वे लिखते हैं-
घर की दुनिया माँ होती है
खुशियों की क्रीम परसने को
दुखों का दही बिलोती है
अवनीश के गीतों में जहाँ आज के हालात हैं, वहीं बिगड़ी सियासत और आज की भागदौड़ भरी जिंदगी भी गीतों में नजर आती हें वे अपने गीत में कहते हैं-
समय की धार ही तो है
किया जिसने विखंडित घर
न भर पाती
हमारे प्यार की गगरी
पिता है गाँव
तो हम हो गए शहरी
गरीबी में जुड़े थे सब
तरक्की ने किया बेघर
इस गीत संग्रह के गीतों में ग्राम्य परिवेश, प्रकृति और मानवता के प्रति गहरी संवेदना और गहरी अनुभूतियाँ हैं। अवनीश अपने गीतों में विषय से जुड़े प्रतीकों को इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि पाठक खुद को उस माहौल के इर्द-गिर्द महसूस करता है। गीतों को पढ़ने पर लगता है कि गीतकार शब्दों और अनुभवों का धनी तो है ही, साथ ही वह विषयों से ऐसा जुड़ाव रखता है कि उनके गीत झूमकर अपनी हकीकत बयान करते हैं।
इस गीत संग्रह में शामिल 44 गीत गीतकार की विराट दृष्टि को पेश करते हैं। गीतों की भाषा सहज औ सरल है। आम आदमी से जुड़े मुहावरे और प्रतीक इस्तेमाल किए गए हैं जो गीतों को प्रभावी बनाते हैं।
अवनीश का गीत संग्रह ‘टुकड़ा कागज का’ गीतों की विविधता समेटे हुए है। इन गीतों में जहाँ आज के हालात हैं, वहीं बिगड़ी सियासत और आज की भागदौड़भरी जिंदगी भी है। ग्राम्य परिवेश, प्रकृति और मानवता के प्रति गहरी संवेदना और गहरी अनुभूतियाँ भी गीतों में हैं।
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